हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही अपनी महान सभ्यता और अपनी वभैवशाली संस्कृति के कारण दुनियां भर में विश्वगुरु के रूप में जाना जाता रहा है.. इस भारत भूमि ने दुनिया को योग,तप, जप और खगोलीय गणितये ज्ञान से अवगत कराया हैं । हम ने ही दुनिया को नास्तिक से आस्तिक बनाया हैं । रामायण और महाभारत जैसे पवित्र और अनमोल ग्रंथो ने दुनियां में इंसान को जीवन जीने के तरीको से अवगत कराया हैं!
आज जिस विज्ञान के प्रगति का दुनियां ढोल पीट रही हैं, उस से कही उत्तम और उच्चकोटी का विज्ञान का विकास भारतवर्ष ने कई हज़ारों साल पहले ही कर लिया था ! इसका जीते-जगते कई उदारण मिलते हैं ।
लेकिन प्रशन ये उठता है कि वो इतना प्रगतीशाली भारतवर्ष आज कहा है? कहा खो गई हमारी वो विश्व धरोहर ?
हमारे संस्कारों में एक वाक्य है "पिता अपनी धरोहर अपने पुत्र को सौपता हैं, ताकी उसकी थाती और ज्यादा प्रगती कर सके" अगर पुत्र क़ाबिल होगा तो उसकी रक्षा करने का कार्य तो करेगा ही साथ ही साथ में उसको और महान का प्रयास भी करेगा ! परन्तु अगर वो काबिल नही होगा तो , जो हैं उसी को गवा बैठगा । और भारतवर्ष के साथ भी यही हुआ ! हम न अपने पूर्वजों की धरहोर को ठीक से संभाला नही और काफी हद तक हम ने इसका पतन कर डाला ! यही कारण है कि आज हमारे पास वो भारतवर्ष नही जो हमारे अग्रदूतों ने हमे सौपा था !
आज हमने modernizations और globalisation के चक्कर में अपने नैतिक मुल्यों का हास कर बेठे! मेरे कहने का ये मतलब बिलकुल नही है कि, हम बदलती दुनियां के साथ बदलना नही चहीये था ,जरूर बदलना चहीये था परंतु अपने आदर्शो के साथ ! अपने आदर्शों के बिना नही ! हमारी संस्कृति में हर प्रक्रिया के पीछे एक scientific और pure लॉजिक छुपा हुआ हैं! हम में से काफी लोग इसे रुढ़िवादी और अंधविस्वास कहे सकते हैं ! लेकिन मैं तो इतना ही कहता हूं अगर अंधविस्वास है तो आज तक हज़ारो ऐसे रहस्ये है जिनको विज्ञान क्यों नही समझ पाय और क्यों उनका हल नही खोज पाया ? इस सवाल का जबाब तब मिल पाता जब हम विज्ञान को अपनी पुरानी जड़ो से जोड़कर देखते ! आज का विज्ञान उस स्तर पर नही है जिस स्तर पर उसको होना चहीये था ! क्यों की हम अपने पुराने ज्ञान विज्ञान को पुराना और बेकार समझते है! जरा सोचिये अगर पुराना विज्ञान बेकार होता तो क्या है संभव है कि पुराने किले ,पुराने मन्दिर, और पुराने स्मारक ,पुरानी इमारतें का भवन निर्माण इतना शानदार होता ? उनका निर्माणकार्ये तो ऐसा हैं की आज के अच्छे अच्छे engineers उनके आगे कही टिक नही पाते ! बिना किसी आधुनिक सुविधा के भी उस समय का इंसान लगभग 150 साल तक जीवित रहता था कैसे ? जबकि आज का इंसान 60 या 70 साल तक ही रह पाता है !आज भी ऐसे अजूबे क्यों है जिनका सीधा संबंध हज़ारो साल पहले की घटना से होता है ? ऐसे बहुत से सुलगते सवालो का जवाब हमारी साइंस के पास नही है! उनके पास आज की तरह communication साधन मोबाइल फ़ोन , हवाई जहाज , एटम बम जैसे साधनों का जिक्र भी महाभारत में मिलता है ! तो सोचने वाला सवाल ये है कि हमारा आधुनिक विज्ञान की तरक्की उनके आगे कहां ठहरती है ?
मैं scientist तो नही परन्तु एक law student हूं इसलिये इनके बारे में तार्किक ढंग से सोचता हूँ! बाकि आप पे छोड़ता हूं!
संत भोलाराम जी देवरी धाम दोस्तों आज हम आपको बातयंगे एक ऐसे स्थान के बारे जो हज़ारों लोगो की आस्था का केंद्र है, राजस्थान के जोधपुर जिले के रतकुड़िया गांव में स्थित है भोलाराम जी महाराज की देवरी। समाधि स्थली का नाम ही देवरी धाम है। यह स्थली जोधपुर जिला अन्तर्गत भोपालगढ़ तहसील के रतकुडि़या गांव के पहाड़ पर स्थित है। इस पहाड़ का यह सबसे ऊँचा भाग है, इसका पूर्व नाम ‘‘देवरी मचाल’’ था जिसका शाब्दिक अर्थ है, देवताओं की भूमि, बूढ़े-बुजुर्गों के अनुसार यह भूमि पूर्व में भी किसी महान् संत की तपस्या स्थली थी। जिसको संत श्री भोलाराम जी महाराज ने भजन करके इस भूमि को पुनः जागृत कर जिज्ञासुओं के लिए आत्मचिंतन केन्द्र व आस्थाशीलों के लिए पवित्र स्थल बना दिया। इस पवित्र धाम का वर्तमान इतिहास मात्र 78 वर्ष का ही है, इस अल्प अवधि में यह स्थल धार्मिक पर्यटक स्थल का रूप ले चुका है। दूर-दराज से रोज सैकड़ों भक्तजन अपने-अपने दुखः निवारण हेतु आते हैं तथा हँसते हुए जाते देखे जा सकते हैं। यहाँ स्थित है भोलाराम जी महाराज की जिवित समाधि स्थल। जहाँ आज बना है भव्य मंदिर यहाँ हर साल बरस
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