जितनी विशाल उन्नत और गौरवशाली हमारी संस्कृती है, उतना ही उन्नत हमारा हिंदी साहित्य हैं! अगर ऐसा कहा जाये की दुनियां कि सबसे खुबसूरत भाषा हिंदी हैं,तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नही होगी ! नि:संदहे हैं भी।
एक भाषा की खुबसूरत का पता उसके काव्ये साहित्य से चलता हैं, कविता अपने आप में भाषा की खुबसूरती को बयां करती है! कविता भाषा की जान होती है! हिंदी का उद्भव तो संस्कृत से हुआ ,परंतु हिंदी कविता का उद्भव तो कई native / रोजमर्रा की जिंदगी में बोले जाने वाली भाषाओं को मिला कर हुआ उदहारण के लिये उर्दू, ब्रज,राजस्थानी,भोजपुरी इत्यादी! इस कारण हिंदी कविता की खुबसूरती में चारचांद लग गए!
हिंदी कविता की सबसे शानदार बात तो ये है कि हिंदी कविता में जितने इमोशन्स है उतने किसी और भाषा में नही होंगे!
हिंदी कविता व्यक्ति के आन्तरिक भावो को बेखूबी उजागर करती हैं! इसमें हास्ये है, इसमें कृदन है,इसमें जोश है, और हर प्रकार की मानविय भावो को बेखूबी प्रकट करने की समता है! इसके बहुत सारे उदारण हमारे सामने है। कबीर,रसखान,जायसी,दादू,मीरा,बच्चन,निराला और भी बहुत....!
मै इस बात को बड़े अदब और शान से मानता हूं कि में एक हिंदी हूँ ! मुझे अपनी भाषा पर नाज है। लेकिन बड़े दुःख की बात तो यह है कि आजकल हम मॉर्डन होने के चक्कर में अपनी भाषा को खत्म कर रहे हैं! और साथ ही साथ अपने काव्ये को भी ! में इस बात को मानता हूँ की बदलते वक्त के साथ हमे बदलना चाहिए पर अपनी संस्कृतिक धरोहर के साथ ,इसके बिना नही ।क्योकि हिंदी हमारी पहचान है। और अगर हम ने अपनी पहचान को ही खो दिया तो हमारा कोई अस्तिवे ही नही बचेगा !
किसी हिंदी के बहुत जाने माने लेखक भारतेंदु हरिशचंद्र ने कहा था।
।।"निज भाषा उनत्ति अह , सब उनत्ति को मूल ।।
।। बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे ना हिये को शूल" ।।
अर्थात अपनी भाषा से ही इंसान की तरक्की संभव है! हिंदी की लोकप्रियता का अंदाजा हम इस बात से ही लगा सकते है कि विश्व में 50 मिलियन हिंदी भासी लोग है जो अपनी राजमर्रा की जिंदगी में हिंदी का प्रयोग करते है ,और बहुत सारे विदेसी भी हिंदी और संस्कृत सीखने भारत आते है, हिंदी और संस्कृत साहित्य अपने आप में बहुत विशाल और उत्तम ज्ञान का सागर है जिसमे जितना गहरा गोता लगाये, उतना ही खोते जाते है! उसमें डूबते जाते है,
हिंदी हमारी कवेल मातृभाषा ही नही अपनी पहचान भी है! इसे बचाने की कोशिश करना हम सब का कर्त्तव्य है।
एक भाषा की खुबसूरत का पता उसके काव्ये साहित्य से चलता हैं, कविता अपने आप में भाषा की खुबसूरती को बयां करती है! कविता भाषा की जान होती है! हिंदी का उद्भव तो संस्कृत से हुआ ,परंतु हिंदी कविता का उद्भव तो कई native / रोजमर्रा की जिंदगी में बोले जाने वाली भाषाओं को मिला कर हुआ उदहारण के लिये उर्दू, ब्रज,राजस्थानी,भोजपुरी इत्यादी! इस कारण हिंदी कविता की खुबसूरती में चारचांद लग गए!
हिंदी कविता की सबसे शानदार बात तो ये है कि हिंदी कविता में जितने इमोशन्स है उतने किसी और भाषा में नही होंगे!
हिंदी कविता व्यक्ति के आन्तरिक भावो को बेखूबी उजागर करती हैं! इसमें हास्ये है, इसमें कृदन है,इसमें जोश है, और हर प्रकार की मानविय भावो को बेखूबी प्रकट करने की समता है! इसके बहुत सारे उदारण हमारे सामने है। कबीर,रसखान,जायसी,दादू,मीरा,बच्चन,निराला और भी बहुत....!
मै इस बात को बड़े अदब और शान से मानता हूं कि में एक हिंदी हूँ ! मुझे अपनी भाषा पर नाज है। लेकिन बड़े दुःख की बात तो यह है कि आजकल हम मॉर्डन होने के चक्कर में अपनी भाषा को खत्म कर रहे हैं! और साथ ही साथ अपने काव्ये को भी ! में इस बात को मानता हूँ की बदलते वक्त के साथ हमे बदलना चाहिए पर अपनी संस्कृतिक धरोहर के साथ ,इसके बिना नही ।क्योकि हिंदी हमारी पहचान है। और अगर हम ने अपनी पहचान को ही खो दिया तो हमारा कोई अस्तिवे ही नही बचेगा !
किसी हिंदी के बहुत जाने माने लेखक भारतेंदु हरिशचंद्र ने कहा था।
।।"निज भाषा उनत्ति अह , सब उनत्ति को मूल ।।
।। बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे ना हिये को शूल" ।।
अर्थात अपनी भाषा से ही इंसान की तरक्की संभव है! हिंदी की लोकप्रियता का अंदाजा हम इस बात से ही लगा सकते है कि विश्व में 50 मिलियन हिंदी भासी लोग है जो अपनी राजमर्रा की जिंदगी में हिंदी का प्रयोग करते है ,और बहुत सारे विदेसी भी हिंदी और संस्कृत सीखने भारत आते है, हिंदी और संस्कृत साहित्य अपने आप में बहुत विशाल और उत्तम ज्ञान का सागर है जिसमे जितना गहरा गोता लगाये, उतना ही खोते जाते है! उसमें डूबते जाते है,
हिंदी हमारी कवेल मातृभाषा ही नही अपनी पहचान भी है! इसे बचाने की कोशिश करना हम सब का कर्त्तव्य है।
well said brother khete h na bhasa se he sanskriti h bhasa nhi toh sanskriti nhi
जवाब देंहटाएंबिलकुल आप से agree हैं। बहुत खूबसूरती से लिखा
जवाब देंहटाएंThanks sir